ट्रांसफार्मर क्या है और इसका डायग्राम?

आज के समय में हम हर वक्त बिजली का इस्तेमाल करते रहते हैं और ऐसे में अगर आपको नहीं मालूम कि ट्रांसफार्मर क्या है (What is transformer in hindi) और इसकी दक्षता कितनी होती है.

यह हमारे किस काम आता है तो आपको इसकी जानकारी जरूर होनी चाहिए. क्योंकि यह सीधे तौर पर हम जो बिजली इस्तेमाल करते हैं वह इसी पर निर्भर करता है.

बिजली क्या है और ये कैसे बनता है इसके बारे में पहले हमने आर्टिकल में बताया है जिसमें हमने यह भी बताया कि जो बिजली बनती है उसे एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने के लिए हाई वोल्टेज में बदला जाता है और फिर इसे घर पर इस्तेमाल करने के लिए कम वोल्टेज में बदला जाता है.

कम वोल्टेज वाली बिजली को दूर नहीं ले जाया जा सकता है. इसीलिए उसे ज्यादा वोल्टेज में कन्वर्ट कर दिया जाता है. इस पोस्ट में हम यह भी बताएंगे कि ये कितने तरह के होते हैं. तो चलिए जानते हैं कि ट्रांसफार्मर क्या होता है (What is transformer in hindi) और यह किस सिद्धांत पर काम करता है.

ट्रांसफार्मर क्या है – What is transformer in Hindi?

ट्रांसफार्मर एक स्टैटिक इलेक्ट्रिकल मशीन है जो एसी इलेक्ट्रिकल पावर को कांस्टेंट फ्रिकवेंसी में दूसरे सर्किट में सप्लाई करता रहता है लेकिन वोल्टेज लेवल को बदला जा सकता है यानी की जरूरत के अनुसार वोल्टेज को बढ़ाया या फिर घटाया जा सकता है.

एनर्जी ट्रांसफर आमतौर पर वोल्टेज और करंट के बदलाव के साथ होता है. यह AC करंट को घटाता है या फिर बढ़ाता है.

विभिन्न प्रकार की जरूरतों को पूरा करने के लिए इस का इस्तेमाल किया जाता है.

यहां तक कि अगर हमारे घरों में मशीनें काफी अधिक है और हमारे लिए करंट काफी नहीं होता तो हम CVT बनाते हैं जिसका पूरा नाम कांस्टेंट वोल्टेज ट्रांसफॉर्मर है. इसके जरिए आने वाली कम वोल्टेज को हम अपनी इच्छा अनुसार बढ़ा लेते हैं.

Transformer kya hai hindi aur kis sidhant par kaam karta hai

ट्रांसफार्मर की परिभाषा:

ट्रांसफार्मर एक स्थिर उपकरण है जो इलेक्ट्रिकल एनर्जी को इलेक्ट्रोमैग्नेटिक इंडक्शन के द्वारा एक सर्किट से दूसरे सर्किट में ट्रांसफर करता है. इसका उपयोग आमतौर पर सर्किट के बीच स्टेप अप और स्टेप डाउन यानी की वोल्टेज को बढ़ाने और घटाने के लिए किया जाता है.

ट्रांसफार्मर किस सिद्धांत पर काम करता है

यह फैराडे लॉ ऑफ मैग्नेटिक इंडक्शन के सिद्धांत पर काम करता है जिसके अनुसार

वोल्टेज का मेग्नीट्यूड फ्लक्स में होने वाले बदलाव के दर के समानुपाती होता है.

ट्रांसफार्मर के कार्य का सिद्धांत बहुत ही सरल है.

जब दो या दो से अधिक वाइंडिंग (winding) जिसे हम coil के रूप में भी जानते हैं के बीच में म्युचुअल इंडक्शन होता है, जिससे इलेक्ट्रिकल एनर्जी दोनों सर्किट के बीच में ट्रांसफर होता है.

मान लीजिए आपके पास एक वाइंडिंग है जिसे हम coil भी कहते हैं और जिसमें एक AC इलेक्ट्रिकल सोर्स जुड़ा हुआ है, जो इसमें इलेक्ट्रिसिटी भेजती है.

इस वाइंडिंग से जो इलेक्ट्रिसिटी फ्लो करती है वह लगातार बदलने वाली और अल्टरनेटिंग flux वाइंडिंग के चारों तरफ पैदा करती है.

अब यहां पर अगर दूसरा वाइंडिंग इस वाइंडिंग के नजदीक लाया जाए तो इसमें से अल्टरनेटिंग flux का छोटा भाग जो होता है वह दूसरे वाइंडिंग को पहले वाइंडिंग से जोड़ देता है.

क्योंकि हम जानते हैं कि अब फ्लक्स जो है वह अपने मेग्नीट्यूड और डायरेक्शन को लगातार बदलता रहता है इसीलिए दूसरे वाइंडिंग या कॉइल में एक चेंजिंग फ्लक्स का जुड़ा हुआ होना जरूरी है.

फैराडे इलेक्ट्रोमैग्नेटिक इंडक्शन लॉ के अनुसार दूसरे वाइंडिंग में एक EMF इंड्यूस्ड हो जाएगा. अगर दूसरे वाइंडिंग के सर्किट को closed कर दिया जाए तो फिर इससे होकर एक करंट फ्लो होने लगेगा.

यह ट्रांसफार्मर का बेसिक वर्किंग प्रिंसिपल है.

कोइल या वाइंडिंग जो म्यूच्यूअल इंडक्शन की वजह से इच्छा अनुसार आउटपुट वोल्टेज देता है उसे सामान्यता हम सेकेंडरी वाइंडिंग कहते हैं यह दूसरा वाइंडिंग या coil होता है.

अगर ट्रांसफार्मर प्राइमरी और सेकेंडरी वाइंडिंग के बीच में में वोल्टेज को बढ़ाता है उसे हम स्टेप अप ट्रांसफॉर्मर के रूप में जानते हैं.

इसके उल्टा जो ट्रांसफर प्राइमरी से सेकेंडरी वाइंडिंग के बीच में वोल्टेज को घटाता है उसे हम स्टेप डाउन ट्रांसफॉर्मर के रूप में जानते हैं. स्टेप अप और स्टेप डाउन ट्रांसफॉर्मर के बारे में हम आगे विस्तार से जानेंगे.

ट्रांसफार्मर का डायग्राम/चित्र – Diagram of a transformer

tranformer kya hai hindi
transformer diagram

जब हम किसी आइडियल ट्रांसफॉर्मर के बारे में बात करते हैं तो प्रैक्टिकल ही यह संभव नहीं है क्योंकि जब प्रायमरी coil सेकेंडरी coil से ओपन एयर में जुड़ा हुआ होता है तो बहुत ही कम मात्रा में flux पैदा होता है.

इसीलिए जब क्लोज्ड सर्किट में करंट फ्लो होता है जो कि सेकेंडरी वाइंडिंग से जुड़ा हुआ होता है वह बहुत ही कम होगा जिसे मापा भी नहीं किया जा सकता है.

फ्लक्स लिंकेज में होने वाले बदलाव की दर सेकेंडरी वाइंडिंग के लिंक फ्लक्स के मात्रा पर निर्भर करती है तो आदर्श रूप से लगभग प्राइमरी वाइंडिंग का पूरा सेकेंडरी वाइंडिंग से लिंक हुआ होना चाहिए. इफेक्टिवली और एफिशिएंटली करने के लिए एक कोर टाइप ट्रांसफॉर्मर का इस्तेमाल किया जाता है.

यह दोनों वाइंडिंग के लिए low reluctance path flow होने के लिए देता है. Low reluctance होने की वजह से प्राइमरी वाइंडिंग से फ्लक्स का अधिकतम मात्रा प्रोड्यूस होता है जोकि लिंक सेकेंडरी वाइंडिंग में पास होता है.

जब ट्रांसफार्मर ऑन होता है और शुरू में जो करंट पास होता है उससे transformer inrush current करंट के नाम से जानते हैं.

ट्रांसफार्मर के पार्ट्स क्या क्या हैं?

इस के मुख्य रूप से तीन पार्ट होते हैं

  • प्राइमरी वाइंडिंग
  • मैग्नेटिक कोर
  • सेकेंडरी वाइंडिंग

प्राइमरी वाइंडिंग

प्राइमरी वाइंडिंग वह वाइंडिंग है जो एसी करंट यानी कि पावर सोर्स से जुड़ी हुई होती है और मैग्नेटिक flux प्रोड्यूस करती हैं.

मैग्नेटिक कोर

प्राइमरी वाइंडिंग जो मैग्नेटिक flux प्रोड्यूस करती है वह इस low reluctance लिंक पास से होकर गुजरती हुई सेकेंडरी वाइंडिंग में जाती है और एक closed मैग्नेटिक सर्किट का निर्माण करती है.

सेकेंडरी वाइंडिंग

प्राइमरी वाइंडिंग के द्वारा प्रोड्यूस किया गया flux, core से होकर गुजरता है और इसे सेकेंडरी वाइंडिंग से जोड़ता है. सेकेंडरी वाइंडिंग भी core के साथ में जुड़ा हुआ होता है और हमें इच्छा अनुसार आउटपुट वोल्टेज बना कर देता है.

ट्रांसफार्मर का महत्व

आप चाहे किसी भी शहर या गांव चले जाएं अगर वहां पर बिजली होगी तो वहां पर ट्रांसफॉर्मर जरूर होगा क्योंकि इसके बिना करंट लोगों के घरों तक नहीं पहुंचा जा सकता है. यह जनसंख्या के अनुसार हर जगह पर लगाया जाता है.

इसकी क्षमता के अनुसार उतने ही घरों को बिजली दी जाती है जितने को यह संभाल सकें. ट्रांसफार्मर जितनी ज्यादा कैपेसिटी का होगा उतने अधिक घरों को एक बिजली की सप्लाई दे सकता है.

लोड अधिक हो जाने पर वोल्टेज कम हो जाता है और लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है.

हमारे जीवन में इसका काफी महत्व है क्योंकि जब भी हमारे आपके क्षेत्र का ट्रांसफार्मर होता है अगर वह जल जाता है तो हमें बिजली के बिना अंधेरे में रहना पड़ता है और यहां तक कि इससे चलने वाले जो मशीनें होती है वह भी ठप पड़ जाती है.

  • आमतौर पर जो इलेक्ट्रिकल पावर होता है 11 किलो वोल्ट में पैदा होता है.
  • आर्थिक कारणों से Ac पावर यानी बिजली को लंबी दूरी तक भेजने के लिए बहुत ही हाई वोल्टेज 220 kV या 440 kV में बदला जाता है.
  • इसीलिए पावर स्टेशन में पैदा किए हुए बिजली को हाई वोल्टेज में बदलने के लिए स्टेप अप ट्रांसफॉर्मर का इस्तेमाल किया जाता है.
  • सुरक्षा कारणों से वोल्टेज को सभी स्टेशनों में स्टेप डाउन ट्रांसफॉर्मर की मदद से अलग-अलग वोल्टेज बदल दिया जाता है.
  • जिससे कि उन्हें अलग अलग स्थानों पर भेज कर उपयोग में लाया जा सके इसके लिए स्टेप डाउन ट्रांसफार्मर से वोल्टेज को 400/230V में बदला जाता है.

ट्रांसफार्मर की दक्षता कितनी होती है?

ट्रांसफार्मर की दक्षता 90-98% होती है. इसकी एफिशिएंसी हमेशा 0 से 100% के बीच में रहती है लेकिन कभी भी ये 1%  या 100% नहीं हो सकता है.

ट्रांसफार्मर की सेफ्टी टिप्स – Safety of transformer in Hindi

  • ट्रांसफार्मर बार बार चेक करें ताकि ब्रेकडाउन कम से कम हो
  • इंस्टॉलेशन के पहले ट्रांसफार्मर को चेक करें। और यह ध्यान दें कि कहीं से जलने की बदबू नहीं आ रही या कोई पावर केबल कनेक्टर खराब तो नहीं है
  • ट्रांसफार्मर में काम करते हो पावर ऑफ रखें।
  • पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट का इस्तेमाल जरूर करें.
  • हमेशा ट्रांसफार्मर और इसके कंप्लेंट को सूखा रखें.

ट्रांसफार्मर के प्रकार क्या है?

Core और वाइंडिंग के पोजीशन के आधार पर प्रकार:

1. Core type

कोर टाइप ट्रांसफॉर्मर ऐसे ट्रांसफॉर्मर होते हैं जिसमें प्राइमरी वाइंडिंग और सेकेंडरी वाइंडिंग को प्रत्येक limb के चारों ओर रखा जाता है.

कोर टाइप जो होता है उसमें और एक मैग्नेटिक सर्किट होता है जो एक इलेक्ट्रिक सीरीज सर्किट के इक्विवेलेंट होता है. इसमें लेमिनेशन लिंब E और L स्ट्रिप के रूप में होता है. इसमें ज्यादा कॉपर की जरूरत होती है.

इस वाइंडिंग को Concentric Winding और Cylindrical Winding के नाम से भी जाना जाता है. इसमें 2 limb होते हैं.

2. Shell type

Shell type ट्रांसफार्मर में दो वाइंडिंग को सेंटर कोर में रखा जाता है Shell type कोर इलेक्ट्रिक पैनल सर्किट के इक्विवेलेंट होता है. इसमें लेमिनेशन L स्ट्रिप के रूप में होता है.

इसमें कम कॉपर की जरूरत होती है. इस वाइंडिंग को Sandwich और Disc Winding के नाम से भी जाना जाता है. इसमें 3 limb होते हैं.

वाइंडिंग के आधार पर प्रकार:

1. Step-up transformer

जब वोल्टेज आउटसाइड पर बढ़ाया जाता है तो ट्रांसफार्मर को स्टेप अप ट्रांसफॉर्मर कहा जाता है इस में number of turns यानी कि coil पर लिपटे हुए कॉपर वायर की संख्या सेकेंडरी वाइंडिंग से ज्यादा होती है. क्यूंकि इस की सेकेंडरी साइड हाई वोल्टेज डिवेलप की जाती है.

भारत जैसे देशों में आम तौर पर 11Kv पर बिजली उत्पन्न होती है किफायती कारणों से लंबी दूरी पर बहुत अधिक वोल्टेज भेजने के लिए स्टेप अप ट्रांसफॉर्मर का इस्तेमाल किया जाता है.

इसके लिए बनाए गए बिजली को सबसे पहले पावर स्टेशन में भेजा जाता है और फिर वहां पर स्टेप अप ट्रांसफॉर्मर की मदद से वोल्टेज को हाई वोल्टेज (220v-440v) में बदला जाता है फिर उससे लंबी दूरी तक पहुंचाई जाती है.

2. Step-down transformer

एक स्टेप डाउन ट्रांसफार्मर आउटपुट वोल्टेज को कम करता है या दूसरे शब्दों में कहें तो यह high voltage low current पावर को एक low voltage high current पावर में बदल देता है.

विभिन्न क्षेत्रों में बिजली पहुंचाने के लिए सुरक्षा कारणों से वोल्टेज को 440v/230v में  बदलना होता है और इसके लिए स्टेप डाउन ट्रांसफॉर्मर का इस्तेमाल किया जाता है.

इस तरह सेकेंडरी वाइंडिंग में प्राइमरी वाइंडिंग की तुलना में no. of turns कम होता है जिसकी वजह से वोल्टेज को कम किया जा सकता है.

Service के आधार पर प्रकार:

1. Power transformer

पावर ट्रांसफॉर्मर एक ऐसा ट्रांसफार्मर होता है जिसका उपयोग इलेक्ट्रिकल एनर्जी को इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक सर्किट के किसी भी हिस्से में ट्रांसफर करने के लिए किया जाता है और यह जनरेटर और डिस्ट्रीब्यूशन और प्राइमरी सर्किट के बीच में होता है.

इसके भी कई प्रकार के होते हैं जैसे छोटे पावर ट्रांसफॉर्मर मध्यम आकार के और बड़े आकार के पावर ट्रांसफॉर्मर.

2. Distribution transformer

Distribution ट्रांसफॉर्मर एक ऐसा ट्रांसफार्मर होता है जिसका उपयोग इलेक्ट्रिकल एनर्जी को इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक सर्किट के किसी भी हिस्से में ट्रांसफर करने के लिए किया जाता है और यह जनरेटर और डिस्ट्रीब्यूशन और प्राइमरी सर्किट के बीच में होता है.

इन ट्रांसफार्मर का इस्तेमाल डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम इंटरफ़ेस के लिए इस्तेमाल किया जाता है. एक सामान्य पावर ट्रांसफॉर्मर में लिक्विड इस्तेमाल किया जाता है और इसका जीवनकाल लगभग 30 साल का होता है.

पावर ट्रांसफार्मर भी कई प्रकार के होते हैं जैसे छोटे पावर ट्रांसफॉर्मर मध्यम आकार के और बड़े आकार के पावर ट्रांसफॉर्मर.

  • छोटे पावर ट्रांसफार्मर की सीमा 500-7500kVA से हो सकती है.
  • मध्यम पावर ट्रांसफार्मर की रेंज -100MVA से हो सकती है.
  • बड़े पावर ट्रांसफार्मर की रेंज 100MVA और उससे अधिक हो सकती है.

3. Instrument transformer

इस का इस्तेमाल AC सिस्टम में इलेक्ट्रिकल क्वांटिटी मापने के लिए जैसे वोल्टेज, करंट, पावर, एनर्जी, पावर फैक्टर, फ्रिकवेंसी इत्यादि. पावर सिस्टम की सुरक्षा के लिए प्रोटेक्शन लेयर के रूप में इंस्ट्रूमेंट ट्रांसफार्मर का इस्तेमाल किया जाता है.

इंस्ट्रूमेंट ट्रांसफॉर्मर का बेसिक फंक्शन AC सिस्टम के वोल्टेज और करंट को स्टेप डाउन करना होता है. पावर सिस्टम के वोल्टेज और करंट लेवल काफी हाई होती है.

बहुत ज्यादा हाई वोल्टेज और करंट को मापने वाले इंस्ट्रूमेंट की डिजाइन कोस्ट काफी ज्यादा होती है. सामान्यता मेजरिंग इंस्ट्रूमेंट 5 एंपियर और 110 वोल्ट के करंट और वोल्टेज को मापने के लिए डिजाइन किए जाते हैं.

इस तरह से बहुत बड़ी इलेक्ट्रिकल क्वांटिटी स्कोर मापना आसान बनाया जाता है वह भी सिर्फ इंस्ट्रूमेंट ट्रांसफॉर्मर की मदद. इस तरह के इंस्ट्रूमेंट ट्रांसफॉर्मर आधुनिक पावर सिस्टम में काफी लोकप्रिय हैं.

4. Current transformer

यह इंस्ट्रूमेंट ट्रांसफॉर्मर का ही एक प्रकार है.

इसका डिजाइन सेकेंडरी वाइंडिंग में अल्टरनेटिंग करंट को प्रोड्यूस करने के लिए डिजाइन किया गया है जो की प्राइमरी वाइंडिंग में मापे गए करंट के समानुपाती होता है.

ये हाई वोल्टेज करंट को बहुत ही कम मात्रा में बदल देते हैं और सुरक्षा के साथ AC ट्रांसमिशन लाइन में एक्चुअल इलेक्ट्रिकल करंट फ्लो प्रदान करते हैं. इसके लिए एक्सटेंडेड Ammeter का इस्तेमाल किया जाता है.

5. Potential transformer

यह एक वोल्टेज स्टेप डाउन ट्रांसफॉर्मर है जो हाई वोल्टेज सर्किट के वोल्टेज को कम करता है जिससे कि कम वोल्टेज के जरिए मेज़रमेंट किया जा सके.

मॉनिटरिंग के अनुसार across या फिर पैरेलल लाइन में जुड़े हुए होते हैं. इस के ऑपरेशन और कंस्ट्रक्शन का मूल सिद्धांत स्टैंडर्ड पावर ट्रांसफॉर्मर के समान होता है.

6. Auto-transformer

ये ऐसे ट्रांसफार्मर है जिसमें सिर्फ एक वाइंडिंग होती है और जो लैमिनेटेड कोर पर होता है.

यह 2 वाइंडिंग ट्रांसफार्मर के जैसा ही होता है बस फर्क यह है कि प्राइमरी और सेकेंडरी के बीच में जो कनेक्शन होता है वह अलग होता है वाइंडिंग का एक भाग प्राइमरी और सेकेंडरी दोनों के लिए कॉमन होता है.

लोड के कंडीशन में लोड करंट का एक पार्ट सप्लाई से लिया जाता है और जो बाकी बचा हुआ भाग होता है वह इस के एक्शन से लिया जाता है. यह वोल्टेज रेगुलेटर की तरह काम करता है.

संक्षेप में

घर के आस-पास लगा हुआ ट्रांसफार्मर जब खराब हो जाता है तो लोगों के बीच में अफरा-तफरी मच जाती है. देखा जाए तो यह हमारी जिंदगी का एक बहुत ही अहम हिस्सा बन चुका है अब चाहे लोग शहरों में रहे या फिर गांव में बात वही है. इसीलिए आपको समझ में आ गया होगा कि इसका हमारी जिंदगी में क्या महत्व है.

आज के इस पोस्ट में आप ने जाना कि ट्रांसफार्मर क्या है (What is transformer in hindi) और इसकी सेफ्टी क्यों जरुरी है. हमें जो रात दिन 24 घंटे बिजली मिलती है इसमें सबसे महत्वपूर्ण भूमिका ट्रांसफार्मर का होता है.

आपने यह भी जाना कि ट्रांसफार्मर किस सिद्धांत पर काम करता है और इसके प्रकार क्या क्या है साथ ही यह किस नियम पर काम करता है.

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Wasim Akram

वसीम अकरम WTechni के मुख्य लेखक और संस्थापक हैं. इन्होंने इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की है लेकिन इन्हें ब्लॉगिंग और कैरियर एवं जॉब से जुड़े लेख लिखना काफी पसंद है.

3 thoughts on “ट्रांसफार्मर क्या है और इसका डायग्राम?”

    • Standerd transfarmer kitne types ke hote hai and unki friqunci & efficincy power kyo hoti hai sir plz help me

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